शिक्षा का अधिकार
हर मॉं – बाप का सपना होता है कि वह अपने बच्चे को एक सुरक्षित, शिक्षित व सुनहरा भविष्य दें और इस सपने की शुरूआत भी बच्चे के जन्म के साथ ही हो जाती है। हर मॉं-बाप अपने बच्चे को अच्छी से अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं ताकि उनका बच्चा पढ़ लिखकर एक बेहतर भविष्य बना सकें। उसकी पढ़ाई की नीव मज़बूत बना सके। सबसे पहले ही उनके दाखिले को लेकर इतनी समस्याएं माता पिता के सामने आ जाती हैं । नए साल की शुरूआत के साथ ही शिक्षा के स्कूलों में रजिस्ट्रेशन के लिए 1 दिसम्बर से 15 जनवरी तक का समय दिया जाता है और अधिकतर स्कूल इसी समय सीमा के मुताबिक ही एडमिशन करते है । इसमे माता पिता, प्राइवेट स्कूलों की लिस्ट में सबसे ऊपर वाले स्कूल, प्राइवेट स्कूल, दिल्ली पब्लिक स्कूल, सेंट्रल स्कूल सरकारी आदि शामिल हैं। इन सभी स्कूलों में रजिस्ट्रेशन फार्म को भरते है। माता पिता को काफी मुशिकलो का सामना करना पड़ता है। इन फार्मों के अंदर इतनी अधिक डॉक्यूमेंट लिये जाते हैं राशन कार्ड ,Birth सर्टिफिकेट बी पी एल कार्ड , इनकम सर्टिफिकेट माता पिता अपने बच्चे के लिए कम से कम 8 से 10 स्कूल में रजिस्ट्रेशन करवाते हैं।
सरकारी स्कूलों में कम फीस होने के कारण ज्यादा बच्चे होने के करण स्कूलों की शिक्षा पर निशान खड़ा हो रहा है । की सरकारी स्कूल में शिक्षा अच्छी नहीं होती है क्या जो सरकार इन प्राइवेट स्कूलों को मान्यता प्रदान करती है वहीं सरकार अपने स्कूलों के शिक्षा को इतना मज़बूत नहीं करती है कि लोगों को अपने बच्चो को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने के लिए प्रेरित कर सकें । फिर क्यों हर माता-पिता अपने बच्चों के दाखिले के समय पब्लिक स्कूलों मे जाते हैं, समझते हैं कि पब्लिक स्कूलों में शिक्षा बेहतर होती है इसलिए उनका रिजल्ट भी बेहतर होता है। यदि देखा जाए तो सरकारी स्कूलों का रिजल्ट पब्लिक स्कूलों से कम नहीं होता है। आज जो भी माता-पिता अमीर है या पैसा वाले है वह अपने बच्चों को पब्लिक स्कूलों में ही पढ़ाना चाहते हैं यह सब केवल स्कूल, की सुन्दता और उस स्कूल, में ज्यादा फीस का ही प्रभाव होता है की उस स्कूल की शिक्षा अच्छी है, इस करण माता पिता शिक्षा में भी अंतर करते है इन सबके बीच सदैब मध्यम वर्ग के आदमी को क्यों पिसना पड़ता है। वह इन नामी स्कूलों में अपने बच्चे चाह कर भी नहीं पढ़ा सकता क्योंकि उसकी महीने की आमदनी से भी अधिक उसके बच्चे के स्कूल की महीने की फीस ही होती है। यदि माता पिता अपना बच्चा उन स्कूलों में पढ़ता है उनकी फीस भी सामान्य लगती है तो भी माता पिता को इन स्कूलों की फीस भरनी पड़ती है क्योंकि प्राइवेट स्कूल भी उन बड़े बड़े स्कूलों की तरह अपनी फीस अधिक करके मनमानी करते हैं। इन सब समस्यों को देखते हुए क्यों मुठ्ठी भर लोग ही अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं। देश के हर 6 से 14 साल की उम्र के बच्चे को मुफ्त शिक्षा हासिल होगी यानी हर बच्चा पहली से आठवीं कक्षा तक मुफ्त और अनिवार्य रूप से पढ़ेगा। सभी बच्चों को घर के आसपास स्कूल में दाखिला हासिल करने का हक होगा।
सभी तरह के स्कूल चाहे वे सरकारी हों, प्राइवेट हों, सरकारी सहायता प्राप्त हों, , केंद्रीय विद्यालय हों, प्राइवेट स्कूल हों, सभी तरह के स्कूल इस कानून के दायरे में आएँगे।
प्राइवेट स्कूलों को भी 25 प्रतिशत सीटें गरीब वर्ग के बच्चों को मुफ्त । जो ऐसा नहीं करेगा उसकी मान्यता रद्द कर दी जाएगी।
सभी स्कूलों में सुविधाएँ होनी अनिवार्य है। इसमें क्लास रूम, टॉयलेट, खेल का मैदान, पीने का पानी, दोपहर का भोजन, पुस्तकालय आदि शामिल हैं। लड़कियो के लिए लाडली फॉर्म भरे जाते है की माता पिता लड़के लड़कियो शिक्षित करे और ज्यादा आगे बड़ा कर वोकेशनल ट्रेनिंग दिलवाये और नौकरी करवाये. एक अच्छे समाज की कल्पना हम तब कर सकते है.
- प्रेम
सेवा दिल्ली