हमारे बहनों के बच्चों के जीवन में सेवा की भूमिका
समाज के मध्य वर्गों और निम्न वर्गों की स्त्रीयों में सुधार लाना अभी तक चुनौती बनी हुई है| पर में एक ऐसे गुजराती समाज के बात को सामने लाना चाहूंगी जिसमें से अधिकतर घरो में तोह पुरुषों का जयसन होना ही स्त्रीयों एवं उनके बचचो की दुर्दशा का कारण है| मैं सेवा भारत जैसी एक सन्स्था से जुड़े होने के कारन ऐसी सब मुद्दों के प्रति जागरूक हूँ | हमने सेवा की ओर से जा कर बहुत सारी बहनों से बात की और यह जानने का प्रयास किया की उनके बच्चों के जीवन में सेवा से जुड़ने के बाद कैसा और कितना बदलाव आया है | मैं इस निबंध में कुछ बहनों की बात उन्ही के शब्दों में यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ |
“ मेरा नाम मीरा है | मैं गुजराती समाज में रहती हूँ और भारत सेवा की सदस्य हूँ | सेवा में जुड़ने से पहले मैं और मेरा पति फेरी का काम करते थे और अपनी दो बेटियों के साथ किराए के मकान में रहते थे | अचानक मेरे और मेरे पति के बीच में लड़ाई हो गयी और उसके कारण मेरे पति ने दूसरी शादी कर ली | मुझे अकेले अपने दो बेटियों के साथ गुजारा चलाने में बहुत तकलीफ होती थी | मुझे अपनी लड़कियों के परवरिश को लेकर बहुत चिंता होने लगी | जब मेरी माँ को मेरी स्तिथि का पता चला तो वोह मुझे अपने घर ले आई जहाँ में अपने दोनों बेटियों के साथ रहने लगी | मेरी माँ ने मेरा इलाज करवाया जिसके बाद मैं दोबारा फेरी पर जाने लगी | यह उस ही वक्त की बात भाई जब मुझे सेवा एवं सेवा शिक्षा केंद्र एवं सेवा के अन्य कार्यकर्मो के बारे में ज्ञात हुआ था | मैंने सेवा शिक्षा केंद्र में अपनी बेटी का दाखिला करवाया जहाँ उससे निशुल्क में शिक्षा दी जाती है | मेरी दोनों बेटियाँ सेवा शिक्षा केंद्र में पढने लगी | एक दिन मुझे सेवा की ‘बेहेन’ मिली जिन्होंने मुझे शिक्षा के अधिकार के बारे में बताया | इस अधिकार के तहत नीजी स्कूलों में गरीब बच्चों के लिए कुछ स्थान रिक्त रखे जाते है | तभी सेवा केंद्र द्वारा मेरे बच्चों का नीजी स्कूलों में दाखिला करवाने में सेवा की बहनों ने मेरी मदद की | दाखिला के समय बहुत दिक्कत होने लगी जिसके कारण स्कूलों में बहुत भाग दौड़ की | नीजी स्कूल में मेरी लड़कियों का दाखिला होने के बाद उसके साथ उसकी स्कूल की अध्यापिकाओं ने भी उनका साथ दिया | स्कूल में मेरी बेटियों ने अनेक प्रतियोगिता में भी भाग लिया| पर मैं अपने बच्चों का खर्च उठाने में असमर्थ रही | स्कूल में कभी कभी प्रोजेक्ट फाइल आदि बनाने के लिए सामान खरीदने का खर्चा पूरी तरह नहीं उठा पाती थी | इन् परेशानी को देखते हुए रोज सुबह मेरी बेटियाँ मंडी में जा कर पुराने कपड़ो जो बेचने में मेरी मदद करती जिससे कुछ पैसे कमाने के बाद वह अपनी आगे की पढाई जारी रख पायी | आज मेरी दोनों बेटियों में से मेरी बड़ी बेटी बारवी में ७६% अंक लेकर महाविद्यला में दाखिला लिया | सेवा शिक्षा केंद्र की मदद से आज मेरी बेटी यहाँ तक पढ़ पाई है |
आज भी वह सेवा के अन्य प्रोग्राम एवं यूथ प्रोग्राम से जुडी हुई है जहाँ से उससे अपनी पढाई आगे रखने का सुझाव मिला | आज मुझे उन्हें इतना पढ़ा लिखा देख कर मुझे अपनी बेटियों के जीवन में बदलाव देख कर बेहद ख़ुशी और गर्व का अनुभव होता है |”
गुजराती समाज में जहाँ लड़कियों को शिक्षा के क्षेत्र में पीछे रखा जाता है वहां आज मेरी बेटी को पढ़ा लिखा कर मुझे गर्वित महसूस होता है | उनके जीवन में बदलाव लाकर मैंने समाज में एक परिवैर्तन लाया है जिससे हमारे गुजराती समाज में लड़कियों को आगे पढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए |
- दीपिका
सेवा दिल्ली